मुझे इस बात का दु: ख है कि रास्ते-भर जिस चित्र की कल्पना ने मेरे शरीर का पसेरी-भर खून जलाकर मुझे निर्जीव-सा बना दिया था, तथा मुझे अपने समधी साहब की ऐसी सुन्दर कल्पना करने के लिए बाध्य किया, उसे उन्होंने अपनी मीठी बातों और खातिरदारी की अप्रत्याशित व्यवस्था से एकदम बरबाद कर डाला।